उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक की स्थापना का प्रारम्भिक उद्देश्य कृषकों को साहूकारों से मुक्ति प्रदान करना था। गत पचास वर्षों में बैंक ने इससे भी आगे बढ़कर सराहनीय कार्य किया है। बैंक अपनी 323 शाखाओं के माध्यम से प्रदेश के कृषकों विशेषकर लघु व सीमान्त कृषकों को दीर्घकालीन कृषि व कृषि आधारित कार्यों हेतु ऋण उपलब्ध कराकर उनकी सर्वांगीण आर्थिक उन्नति में सहयोग प्रदान करता है। वर्तमान में संस्था के सदस्यों की संख्या लगभग 30.38 लाख है, जिनमे से लगभग 94 प्रतिशत लघु एवं सीमान्त कृषक है।

       उ0प्र0 सहकारी ग्राम विकास बैंक की स्थापना एकात्मक पद्धति पर वर्ष 1959 मे सहकारी अधिनियम के अन्तर्गत हुई थी। बैंक के संगठन एवं प्रबन्ध के सम्बन्ध में उ0प्र0 सहकारी समिति नियमावली के प्राविधान लागू होते हेै। इस इसके अतिरिक्त उ0प्र0 सहकारी ग्राम विकास बैंक अधिनियम 1964 एवं उसके अधीन बनी नियमावली 1971 के प्राविधानों के अनुसार बैंक के ऋण वितरण, ऋणपत्र निर्गमन एवं वसूली आदि कार्य सम्पादित होते है।

      प्रारम्भ में बैंक द्वारा, साहूकारों से लिये गये ऋण की अदायगी तथा ट्रैक्टर खरीद हेतु किसानों को ऋण दिया जाता था। अक्टूबर 1965 से शासन के निर्णय के अनुसार चयनित 17 जनपदों में अल्प सिंचाई कार्य हेतु तकाबी ऋण (जो शासन द्वारा विकास खण्डो के माध्यम से सीधे दिया जाता था) , बैंक के माध्यम से वितरित करने की व्यवस्था की गयी। बैंक की उपलब्धियों को दृष्टिगत रखते हुये शासन द्वारा अल्प सिंचाई हेतु ऋण वितरण का कार्य बाद में बैंक को सौप दिया गया था। समय के साथ-साथ बैंक द्वारा विविधीकरण योजनाओं में ऋण वितरण पर विशेष बल दिया गया। वर्ष 1989 से बैंक द्वारा अकृषि क्षेत्र के अन्तर्गत भी ऋण वितरण आरम्भ किया गया। वर्तमान समय में बैंक कुल 323 शाखाओं के माध्यम से कार्य कर रही है |