सहकारी समिति व्यक्तियों की एक ऐसी स्वायत्त संस्था है जो संयुक्त स्वामित्व वाले और लोकतंत्रीय आधार पर नियंत्रित उद्यम के जरिए अपनी सामान्य आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्वेच्छा से एकजुट होते हैं।
मूल्यः-सहकारी समितियॉं स्वावलम्बन, स्व-उत्तरदायित्व, लोकतंत्र, समानता, साम्यता और एकजुटता जैसे मूल्यों पर आधारित होती है। अपने संस्थापकों की परम्परा के अनुसार सहकारी समितियों के सदस्य ईमानदारी, खुलेपन, सामाजिक उत्तरदायित्व तथा दूसरे लोगों के हित-चिन्तन जैसे नैतिक मूल्यों पर विश्वास करते हैं।
सिद्धान्तः-सहकारी सिद्धान्त ऐसे दिशा-निर्देश हैं जिनके द्वारा सहकारी समितियॉं अपने मूल्यों को व्यावहारिक रूप प्रदान करती हैं।
पहला सिद्धान्त : स्वैच्छिक और खुली सदस्यतासहकारी समितियॉं ऐसे स्वैच्छिक संगठन हैं जो सभी लोगों के लिए खुले हैं जो उनकी सेवाओं का उपयोग करने में समर्थ हैं और लैंगिक,सामाजिक,जातीय,राजनैतिक या धर्म के आधार पर किसी भेदभाव किए बगैर सदस्यता के उत्तरदायित्वों को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं।
दूसरा सिद्धान्त : प्रजातांत्रिक सदस्य-नियंत्रणसहकारी समितियॉं अपने सदस्यों द्वारा नियंत्रित प्रजातांत्रिक संगठन हैं जो उनकी नीतियॉं निर्धारित करने और नियंत्रण लेने में सक्रिय तौर पर भाग लेते हैं। चुने गये प्रतिनिधियों के रूप में कार्यरत पुरूष तथा महिलांए अपने सदस्यों के प्रति जवाब-देह होते हैं। प्राथमिक सहकारी समितियों में मतदान करने के समान अधिकार होते हैं (एक सदस्य, एक मत) और अन्य स्तरों पर भी सहकारी समितियॉं प्रजातांत्रिक तरीके से गठित की जाती हैं।
तीसरा सिद्धान्तः सदस्य की आर्थिक भागीदारीसदस्य समान अंशदान करते हैं और अपनी सहकारी समिति की पूंजी पर प्रजातांत्रिक तरीके से नियंत्रण रखते हैं। कम से कम इस पूंजी का एक हिस्सा आम तौर पर सहकारी समिति की साझी सम्पत्ति होती है। सदस्यता की शर्त के रूप में अंशदान की गई पूंजी पर सदस्यों को आमतौर पर सीमित प्रतिकर, यदि कोई हो, मिलता है। सदस्य अधिकोष पूंजी को निम्नलिखित किसी एक या सभी प्रयोजनों के लिए आवंटित करते हैं: सम्भवतः आरक्षित निधियॉं स्थापित करके- जिनका कम से कम एक भाग अभिभाज्य होगा, सहकारी समिति के साथ उनके लेन देन के अनुपात में सदस्यों को लाभ पहुंचाकर और सदस्यों द्वारा अनुमादित अन्य कार्य कलापों में सहायता देकर अपनी सहकारी समिति का विकास करना।
चौथा सिद्धान्तः स्वायत्तता और स्वतंत्रतासहकारी समितियॉं अपने सदस्यों द्वारा नियंत्रित और स्वावलम्बी संस्थाऐं होती हैं। यदि वे सरकार सहित अन्य संस्थाओं के साथ करार करती हैं अथवा बाहरी स्रोतों से पूंजी जुटाती हैं तो वे ऐसा उन शर्तो पर करती हैं जिनसे उनके सदस्यों द्वारा प्रजातांत्रिक नियंत्रण सुनिश्चित होता हो और उनकी सहकारी स्वायत्तता भी बनी रहती हो।
पांचवा सिद्धान्तः शिक्षा, प्रशिक्षण और सूचनासहकारी समितियॉं अपने सदस्यों, चुने गये प्रतिनिधियों, प्रबन्धकों तथा कर्मचारियों को शिक्षा और प्रशिक्षण उपलब्ध कराती हैं ताकि वे अपनी सहकारी समितियों के विकास में कारगर योगदान कर सके। वे आम जनता विशेष रूप से युवाओं और राय देने वाले नेताओं को, सहकारिता के स्वरूप और लाभों के बारे में सूचना देती हैं।
छठा सिद्धान्तः सहकारी समितियों में परस्पर सहयोगसहकारी समितियॉं अपने सदस्यों की सर्वाधिक कारगर ढंग से सेवा करती हैं और स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संघों के जरिए साथ साथ काम करके सहकारिता आंदोलन को सुदृढ़ बनाती हैं।
सातवॉं सिद्धान्तः समुदाय के प्रतिनिष्ठासहकारी समितियॉं अपने सदस्यों द्वारा अनुमोदित नीतियों के जरिए अपने समुदायों के निरंतर विकास के लिए कार्य करती है |